मुजाहिद की दास्तान है ख़्वाब मेरे
मुजाहिद की दास्तान है ख़्वाब मेरे
उम्र भर की थकान है ख़्वाब मेरे
परिंदे तो सभी है पिंजरों में कैद
पतंगों का आसमान है ख़्वाब मेरे
जहाँ सभी मुसाफिर थक हार के पहुंचे
जन्नतों का श्मशान है ख़्वाब मेरे
मैं इस मकां से उस मकां में दरबदर
दीवारों के दरमियान है ख़्वाब मेरे
रात भी बदल के सुबह हो गई
अब तलक वीरान है ख़्वाब मेरे