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GHAZAL

मुजाहिद की दास्तान है ख़्वाब मेरे

मुजाहिद की दास्तान है ख़्वाब मेरे

उम्र भर की थकान है ख़्वाब मेरे

परिंदे तो सभी है पिंजरों में कैद

पतंगों का आसमान है ख़्वाब मेरे

जहाँ सभी मुसाफिर थक हार के पहुंचे

जन्नतों का श्मशान है ख़्वाब मेरे

मैं इस मकां से उस मकां में दरबदर

दीवारों के दरमियान है ख़्वाब मेरे

रात भी बदल के सुबह हो गई

अब तलक वीरान है ख़्वाब मेरे

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