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GHAZAL

तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है

तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है

न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है

किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म

गिला है जो भी किसी से तिरे सबब से है

हुआ है जब से दिल-ए-ना-सुबूर बे-क़ाबू

कलाम तुझ से नज़र को बड़े अदब से है

अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले

तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है

कहाँ गए शब-ए-फ़ुर्क़त के जागने वाले

सितारा-ए-सहरी हम-कलाम कब से है

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तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है — Faiz Ahmad Faiz • ShayariPage