खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा

खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा

ख़ुलूस तो है मगर एतिबार जाता रहा

किसी की आँख में मस्ती तो आज भी है वही

मगर कभी जो हमें था ख़ुमार जाता रहा

कभी जो सीने में इक आग थी वो सर्द हुई

कभी निगाह में जो था शरार जाता रहा

अजब सा चैन था हम को कि जब थे हम बेचैन

क़रार आया तो जैसे क़रार जाता रहा

कभी तो मेरी भी सुनवाई होगी महफ़िल में

मैं ये उमीद लिए बार बार जाता रहा