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GHAZAL

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे

मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

मिरे रास्तों में उजाला रहा

दिए उस की आँखों में जलते रहे

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था

मिरे पाँव शो'लों पे जलते रहे

सुना है उन्हें भी हवा लग गई

हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे

वो क्या था जिसे हम ने ठुकरा दिया

मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी

किराए के घर थे बदलते रहे

लिपट कर चराग़ों से वो सो गए

जो फूलों पे करवट बदलते रहे

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