कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे

कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे

कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे


बीता दीद उम्मीद का मौसम ख़ाक उड़ती है आँखों में

कब भेजोगे दर्द का बादल कब बरखा बरसाओगे


अहद-ए-वफ़ा या तर्क-ए-मोहब्बत जो चाहो सो आप करो

अपने बस की बात ही क्या है हम से क्या मनवाओगे


किस ने वस्ल का सूरज देखा किस पर हिज्र की रात ढली

गेसुओं वाले कौन थे क्या थे उन को क्या जतलाओगे


'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर भरना भी लुट जाना थी

तुम इस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे