इधर ये हाल कि छूने का इख़्तियार नहीं

इधर ये हाल कि छूने का इख़्तियार नहीं

उधर वो हुस्न कि आँखों पे ए'तिबार नहीं

मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ

मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं

तुम अपनी हालत-ए-ग़ुर्बत का ग़म मनाते हो

ख़ुदा का शुक्र करो मुझ से बे-दयार नहीं

मैं सोचता हूँ कि वो भी दुखी न हो जाए

ये दास्तान कोई ऐसी ख़ुश-गवार नहीं

तो क्या यक़ीन दिलाने से मान जाओगे?

यक़ीं दिलाऊँ कि ये हिज्र दिल पे बार नहीं

क़दम क़दम पे नई ठोकरें हैं राहों में

दयार-ए-इश्क़ में कोई भी कामगार नहीं

यही सुकून मिरी बे-कली न बन जाए

कि ज़िंदगी में कोई वजह-ए-इन्तिज़ार नहीं

ख़ुदा के बारे में इक दिन ज़रूर सोचेंगे

अभी तो ख़ुद से तअल्लुक़ भी उस्तुवार नहीं

गिला तो मुझ से वो करता है इस तरह 'जव्वाद'

कि जैसे मैं तो जुदाई में सोगवार नहीं