Shayari Page
GHAZAL

कोई किसी की तरफ़ है कोई किसी की तरफ़

कोई किसी की तरफ़ है कोई किसी की तरफ़

कहाँ है शहर में अब कोई ज़िंदगी की तरफ़

सभी की नज़रों में ग़ाएब था जो वो हाज़िर था

किसी ने रुक के नहीं देखा आदमी की तरफ़

तमाम शहर की शमएँ उसी से रौशन थीं

कभी उजाला बहुत था किसी गली की तरफ़

कहीं की भूक हो हर खेत उस का अपना है

कहीं की प्यास हो जाएगी वो नदी की तरफ़

न निकले ख़ैर से अल्लामा क़ौल से बाहर

'यगाना' टूट गए जब चले ख़ुदी की तरफ़

Comments

Loading comments…