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GHAZAL

तिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना है

तिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना है

कि सारा खेल इस उम्मीद पर ही चलना है

क़दम ठहर ही गए हैं तिरी गली में तो फिर

यहाँ से कोई दुआ माँग कर ही चलना है

रहे हो साथ तो कुछ वक़्त और दे दो हमें

यहाँ से लौट के बस अब तो घर ही चलना है

मुख़ालिफ़त पे हवाओं की क्यों परेशाँ हों

तुम्हारी सम्त अगर उम्‍र भर ही चलना है

कोई उमीद नहीं खिड़कियों को बन्द करो

कि अब तो दश्त-ए-बला का सफ़र ही चलना है

ज़रा सा क़ुर्ब मयस्सर तो आए उस का मुझे

कि उस के बाद ज़बाँ का हुनर ही चलना है

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तिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना है — Shariq Kaifi • ShayariPage