एक दो ही नहीं छब्बीस दिए

एक दो ही नहीं छब्बीस दिए

एक इक कर के जलाए मैं ने


एक दिया नाम का आज़ादी के

उस ने जलते हुए होंटों से कहा

चाहे जिस मुल्क से गेहूँ माँगो

हाथ फैलाने की आज़ादी है


इक दिया नाम का ख़ुश-हाली के

उस के जलते ही ये मालूम हुआ

कितनी बद-हाली है

पेट ख़ाली है मिरा जेब मिरी ख़ाली है


इक दिया नाम का यक-जेहती के

रौशनी उस की जहाँ तक पहुँची

क़ौम को लड़ते झगड़ते देखा

माँ के आँचल में हैं जितने पैवंद

सब को इक साथ उधड़ते देखा

दूर से बीवी ने झल्ला के कहा

तेल महँगा भी है मिलता भी नहीं

क्यूँ दिए इतने जला रक्खे हैं

अपने घर में न झरोका न मुंडेर

ताक़ सपनों के सजा रक्खे हैं

आया ग़ुस्से का इक ऐसा झोंका

बुझ गए सारे दिए

हाँ मगर एक दिया नाम है जिस का उम्मीद

झिलमिलाता ही चला जाता है