आह-ए-जाँ-सोज़ की महरूमी-ए-तासीर न देख

आह-ए-जाँ-सोज़ की महरूमी-ए-तासीर न देख

हो ही जाएगी कोई जीने की तदबीर न देख

हादसे और भी गुज़रे तिरी उल्फ़त के सिवा

हाँ मुझे देख मुझे अब मेरी तस्वीर न देख

ये ज़रा दूर पे मंज़िल ये उजाला ये सुकूँ

ख़्वाब को देख अभी ख़्वाब की ताबीर न देख

देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार

रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख

कुछ भी हूँ फिर भी दुखे दिल की सदा हूँ नादाँ

मेरी बातों को समझ तल्ख़ी-ए-तक़रीर न देख

वही 'मजरूह' वही शाइर-ए-आवारा-मिज़ाज

कोई उट्ठा है तिरी बज़्म से दिल-गीर न देख