"तारीख़ क्या है"

"तारीख़ क्या है"

सुबह रोशन थी और गर्मियों के थका देने वाले दिनों मे सारी दुनिया से आज़ाद हम मछलियों की तरह मैली नेहरों मे गोते लगाते

अपने चेहरे पे कीचड़ लगा कर डराते थें एक दूसरे को

किनारो पे बैठे हुये हमने जो अहद एक दूसरे से लिये थें

उसके धुंधले से नक्शे आज भी मेरे दिल पर कहीं नक्श हैं ख़ुदा रोज़ सूरज को तैयार करके हमारी तरफ़ भेजता था

और हम साया-ए-कुफ्र मे एक दूजे के चेहरे की ताबिंदगी की दुआ माँगते थें

उसका चेहरा कभी मेरी आँखो से ओझल नहीं हो सका, उसका चेहरा अगर मेरी आँखो से हटता तो मै काएनात मे फैले हुये

उन मज़ाहिर की तफीम नज़्मों में करता, कि जिस पर बज़िद ने ये बीमार जिन्न को ख़ुद अपनी तमन्नों की आत्माओं ने

इतना डराया के इनको हवस के कफ़स मे मोहब्बत की किरणों ने छूने की कोशिश भी की तो ये उससे परे हो गये

इनके बस में नहीं कि ये महसूस करते इक मोहब्बत भरे हाथ का लम्स, जिससे इन्कार कर करके इनके बदन खुरदरे हो गये

एक दिन जो ख़ुदा और मोहब्बत की इक किस्त को अगले दिन पर नही टाल सकते, ख़ुदा और मोहब्बत पे रायज़नी करते थकते नहीं

और इस पर भी ये चाहते हैं कि मै इनकी मर्जी की नज़्मे कहूँ जिनमें इनकी तशफ़्फी का सामान हो, आदमी पढ़के हैरान हो

जिसको ये इल्म कहते हैं, उस इल्म की बात हो, फ़लसफ़ा, दीन, तारीख़, साय, समाज, अक़ीदा, ज़बान, माशी मशावात, इंसान के रंग-ओ-आदातों अतवार, ईजाद तकलीद, अम्ल इंतशार, नैनन की अज़मद के क़िस्से, खितरी बलाओं से और देवताओं से जंग, सुलहनामा लिये तेज़ रफ़्तार, घोड़ों पे सहमे सिपाही, नज़रिया-ए-समावात के काट ने क्या कहा? और उसके जुराबों के फ़ीतों की डिब्बीयाँ, किमीयाँ के ख़जानों का मुँह खोलने वाला बाबल कौन था जिसने पारे को पत्थर में ढाला और हरशल की आँखें जो बस आसमानों पे रहती, क्या वो इग्लेंड का मोसिन नहीं

समंदर की तक्सीर और एटलांटिक पे आबादियाँ, मछलियाँ क़श्तियो जैसी क्यों हैं? और राफेल के हाथ पर मिट्टी कैसे लगी? ये सवाल

और ये सारी बाते मेरे किस काम की पिछले दस साल से उसकी आवाज़ तक मैं नहीं सुन सका, और ये पूछते हैं कि हेगल के नज़दीक तारीख़ क्या है?