भुला दिया था जिसको एक शाम याद आ गया
भुला दिया था जिसको एक शाम याद आ गया
ग़ज़ाल देखकर वो ख़ुश-ख़िराम याद आ गया

@tehzeeb-hafi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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भुला दिया था जिसको एक शाम याद आ गया
ग़ज़ाल देखकर वो ख़ुश-ख़िराम याद आ गया
मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं
ज़ख़्म भरने से पहले किसी ने मिरी पट्टियाँ खोल दीं
गले तो लगना है उससे कहो अभी लग जाए
यही न हो मेरा उसके बग़ैर जी लग जाए
क्या ख़बर उस रौशनी में और क्या रौशन हुआ
जब वो इन हाथों से पहली मर्तबा रौशन हुआ
ये सोच कर मेरा सहरा में जी नहीं लगता
मैं शामिल-ए-सफ़-ए-आवारगी नहीं लगता
अश्क ज़ाया हो रहे थे देख कर रोता न था
जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता न था
मुसलसल वार करने पर भी ज़र्रा भर नहीं टूटा
मैं पत्थर हो गया फिर भी तेरा ख़ंजर नहीं टूटा
ये इश्क़ वो है जिसने बहर-ओ-बर ख़राब कर दिया
हमें तो उसने जैसे ख़ास कर ख़राब कर दिया
हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गए
हिज्र से बचने के मंतर आ गए
नहीं था अपना मगर फिर भी अपना अपना लगा
किसी से मिल के बहुत देर बाद अच्छा लगा
जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़
उसका कमरा एक तरफ़ है बाक़ी दुनिया एक तरफ़
आज जिन झीलों का बस काग़ज़ में नक्शा रह गया
एक मुद्दत तक मैं उन आँखों से बहता रह गया
हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गए
हिज्र से बचने के मंतर आ गए
तेरी तरफ़ मेरा ख़याल क्या गया
के फिर मैं तुझको सोचता चला गया
तेरा चेहरा तेरे होंठ और पलकें देखें
दिल पे आँखें रक्खे तेरी साँसें देखें
आँख की खिड़कियाँ खुली होंगी
दिल में जब चोरीयाँ हुई होंगी
कितनी रातें काट चुका हूँ पर वो वस्ल का दिन
इस दरिया से पहले कितने जंगल आते हैं
ख़्वाबों को आँखों से मिन्हा करती है
नींद हमेशा मुझसे धोखा करती है
मुझको दरवाजे पर ही रोक लिया जाता है
मेरे आने से भला आप का क्या जाता है
मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है, मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा