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GHAZAL

क्या ख़बर उस रौशनी में और क्या रौशन हुआ

क्या ख़बर उस रौशनी में और क्या रौशन हुआ

जब वो इन हाथों से पहली मर्तबा रौशन हुआ

वो मेरे सीने से लगकर जिसको रोई कौन था

किसके बुझने पे मैं आज उसकी जगह रौशन हुआ

वैसे मैं इन रास्तों और ताख़चों का था नहीं

फिर भी तूने जिस जगह पर रख दिया रौशन हुआ

मेरे जाने पर सभी रोए बहुत रोए मगर

इक दिया मेरी तवक़्क़ो से सिवा रौशन हुआ

तेरे अपने तेरी किरनों को तरसते है यहाँ

तू ये किन गलियों में किन लोगों में जा रौशन हुआ

मैंने पूछा था कि मुझ जैसा भी कोई और है

दूर जंगल में कहीं इक मकबरा रौशन हुआ

जाने कैसी आग में वो जल रहा है इन दिनों

उसने मुँह पोंछा तो मेरा तौलिया रौशन हुआ

कोई उसकी रौशनी के शर से कब महफ़ूज़ है

मेरी आँखें बुझ गई और कोयला रौशन हुआ

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