क्या ख़बर उस रौशनी में और क्या रौशन हुआ
क्या ख़बर उस रौशनी में और क्या रौशन हुआ
जब वो इन हाथों से पहली मर्तबा रौशन हुआ
वो मेरे सीने से लगकर जिसको रोई कौन था
किसके बुझने पे मैं आज उसकी जगह रौशन हुआ
वैसे मैं इन रास्तों और ताख़चों का था नहीं
फिर भी तूने जिस जगह पर रख दिया रौशन हुआ
मेरे जाने पर सभी रोए बहुत रोए मगर
इक दिया मेरी तवक़्क़ो से सिवा रौशन हुआ
तेरे अपने तेरी किरनों को तरसते है यहाँ
तू ये किन गलियों में किन लोगों में जा रौशन हुआ
मैंने पूछा था कि मुझ जैसा भी कोई और है
दूर जंगल में कहीं इक मकबरा रौशन हुआ
जाने कैसी आग में वो जल रहा है इन दिनों
उसने मुँह पोंछा तो मेरा तौलिया रौशन हुआ
कोई उसकी रौशनी के शर से कब महफ़ूज़ है
मेरी आँखें बुझ गई और कोयला रौशन हुआ