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GHAZAL

मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं

मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं

ज़ख़्म भरने से पहले किसी ने मिरी पट्टियाँ खोल दीं

हम मछेरों से पूछो समुंदर नहीं है ये इफ़रीत है

तुम ने क्या सोच कर साहिलों से बँधी कश्तियाँ खोल दीं

उस ने वा'दों के पर्बत से लटके हुओं को सहारा दिया

उस की आवाज़ पर कोह-पैमाओं ने रस्सियाँ खोल दीं

दश्त-ए-ग़ुर्बत में मैं और मिरा यार-ए-शब-ज़ाद बाहम मिले

यार के पास जो कुछ भी था यार ने गठरियाँ खोल दीं

कुछ बरस तो तिरी याद की रेल दिल से गुज़रती रही

और फिर मैं ने थक हार के एक दिन पटरियाँ खोल दीं

उस ने सहराओं की सैर करते हुए इक शजर के तले

अपनी आँखों से ऐनक उतारी कि दो हिरनियाँ खोल दीं

आज हम कर चुके अहद-ए-तर्क-ए-सुख़न पर रक़म दस्तख़त

आज हम ने नए शाइ'रों के लिए भर्तियाँ खोल दीं

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