कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
तेरे जाने का ग़म किया गया है

@tehzeeb-hafi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
तेरे जाने का ग़म किया गया है
इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं
जब उस की तस्वीर बनाया करता था
कमरा रंगों से भर जाया करता था
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा
अश्क़ ज़ाया हो रहे थे, देख कर रोता न था
जिस जगह बनता था रोना, मैं वहा रोता न था
इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ
ख़ुद ही आँगन ख़ुद ही शजर भी हूँ
इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
वर्ना हर चीज़ आरजी़ है मुझे
अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी
वो इक परी जो मुझे सब्ज़ करने आई थी
किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है
कि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है
तेरा चुप रहना मेरे ज़हन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे