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GHAZAL

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ

ख़ुद ही आँगन ख़ुद ही शजर भी हूँ

अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ

मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ

आसमाँ और जमीं की वुसअत देख

मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ

ख़ुद ही मैं ख़ुद को लिख रहा हूँ ख़त

और मैं अपना नामा-बर भी हूँ

दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर

तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ

एक फलदार पेड़ हूँ लेकिन

वक़्त आने पे बे-समर भी हूँ

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इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ — Tehzeeb Hafi • ShayariPage