मुझ से मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नहीं करता
मुझ से मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नहीं करता
इसका मतलब तू भी मुझसे सच्चा प्यार नहीं करता

@tehzeeb-hafi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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मुझ से मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नहीं करता
इसका मतलब तू भी मुझसे सच्चा प्यार नहीं करता
पायल कभी पहने कभी कंगन उसे कहना
ले आए मुहब्बत में नयापन उसे कहना
यह सोच कर मेरा सहरा में जी नहीं लगता
मैं शामिले सफे आवारगी नहीं लगता
मेरी आंख से तेरा गम छलक तो नहीं गया
तुझे ढूंढ कर कहीं मैं भटक तो नहीं गया
ये शायरी ये मेरे सीने में दबी हुई आग
भड़क उठेगी कभी मेरी जमा की हुई आग
कब पानी गिरने से ख़ुशबू फूटी है
मिट्टी को भी इल्म है बारिश झूठी है
रात को दीप की लो कम नहीं रखी जाती
धुंध में रोशनी मध्यम नहीं रखी जाती
हां ये सच है कि मोहब्बत नहीं की
दोस्त बस मेरी तबीयत नहीं की
ग़लत निकले सब अंदाज़े हमारे
कि दिन आये नही अच्छे हमारे
महीनों बाद दफ्तर आ रहे हैं
हम एक सदमे से बाहर आ रहे हैं
जख्मों ने मुझ में दरवाजे खोले हैं
मैंने वक्त से पहले टांके खोलें हैं
मेरे दिल में ये तेरे सिवा कौन है?
तू नहीं है तो तेरी जगह कौन है?
तिलिस्म-ए-यार ये पहलू निकाल लेता है
कि पत्थरों से भी ख़ुशबू निकाल लेता है
ख़ुद पर जब इश्क़ की वहशत को मुसल्लत करूँगा
इस कदर ख़ाक उड़ाऊँगा कयामत करूँगा
तुमने तो बस दिया जलाना होता है
हमने कितनी दूर से आना होता है
कैसे उसने ये सब कुछ मुझसे छुपकर बदला
चेहरा बदला रस्ता बदला बाद में घर बदला
तारीकियों को आग लगे और दिया जले
ये रात बैन करती रहे और दिया जले
ये किस तरह का तअ'ल्लुक़ है आपका मेरे साथ
मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ
ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।
अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे हैं
के घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं।