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GHAZAL

तारीकियों को आग लगे और दिया जले

तारीकियों को आग लगे और दिया जले

ये रात बैन करती रहे और दिया जले

उस की ज़बाँ में इतना असर है कि निस्फ़ शब

वो रौशनी की बात करे और दिया जले

तुम चाहते हो तुम से बिछड़ के भी ख़ुश रहूँ

या'नी हवा भी चलती रहे और दिया जले

क्या मुझ से भी अज़ीज़ है तुम को दिए की लौ

फिर तो मेरा मज़ार बने और दिया जले

सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है

मैं चाहता हूँ शाम ढले और दिया जले

तुम लौटने में देर न करना कि ये न हो

दिल तीरगी में घेर चुके और दिया जले

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तारीकियों को आग लगे और दिया जले — Tehzeeb Hafi • ShayariPage