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GHAZAL

हां ये सच है कि मोहब्बत नहीं की

हां ये सच है कि मोहब्बत नहीं की

दोस्त बस मेरी तबीयत नहीं की

इसलिए गांव मैं सैलाब आया

हमने दरियाओ की इज्जत नहीं की

जिस्म तक उसने मुझे सौंप दिया

दिल ने इस पर भी कनायत नहीं की

मेरे एजाज़ में रखी गई थी

मैने जिस बज़्म में शिरकत नहीं की

याद भी याद से रखा उसको

भूल जाने में भी गफलत नहीं की

उसको देखा था अजब हालत में

फिर कभी उसकी हिफाज़त नहीं की

हम अगर फतह हुए है तो क्या

इश्क ने किस पे हकूमत नहीं की

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