GHAZAL•
यह सोच कर मेरा सहरा में जी नहीं लगता
By Tehzeeb Hafi
यह सोच कर मेरा सहरा में जी नहीं लगता
मैं शामिले सफे आवारगी नहीं लगता
कभी-कभी वो ख़ुदा बन के साथ चलता है
कभी-कभी तो वो इंसान भी नहीं लगता
यकीन क्यों नहीं आता तुझे मेरे दिल पर
ये फल कहां से तुझे मौसमी नहीं लगता
मैं चाहता हूं वो मेरी जबीं पे बौसा दे
मगर जली हुई रोटी को घी नहीं लगता
तेरे ख्याल से आगे भी एक दुनिया है
तेरा ख्याल मुझे सरसरी नहीं लगता
मैं उसके पास किसी काम से नहीं आता
उसे ये काम कोई काम ही नहीं लगता