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GHAZAL

ख़ुद पर जब इश्क़ की वहशत को मुसल्लत करूँगा

ख़ुद पर जब इश्क़ की वहशत को मुसल्लत करूँगा

इस कदर ख़ाक उड़ाऊँगा कयामत करूँगा

हिज्र की रात मेरी जान को आई हुई है

बच गया तो मैं मोहब्बत की मज़म्मत करूँगा

अब तेरे राज़ सँभाले नहीं जाते मुझसे

मैं किसी रोज़ अमानत में ख़यानत करूँगा

लयलातुल क़दर गुज़रेंगे किसी जंगल में

नूर बरसेगा दरख़्तों की इमामत करूँगा

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