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GHAZAL

ये शायरी ये मेरे सीने में दबी हुई आग

ये शायरी ये मेरे सीने में दबी हुई आग

भड़क उठेगी कभी मेरी जमा की हुई आग

मैं छू रहा हूं तेरा जिस्म ख्वाब के अंदर

बुझा रहा हूं मैं तस्वीर में लगी हुई आग

खिजां में दूर रखो माचिसो को जंगल से

दिखाई देती नहीं पेड़ में छुपी हुई आग

मैं काटता हूं अभी तक वही कटे हुए लफ्ज़

मैं तापता हूं अभी तक वही बुझी हुई आग

यही दिया तुझे पहली नजर में भाया था

खरीद लाया मैं तेरी पसंद की हुई आग

एक उम्र से जल बूझ रहा हूं इनके सबब

तेरा बचा हुआ पानी तेरी बची हुई आग

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