GHAZAL•
रात को दीप की लो कम नहीं रखी जाती
By Tehzeeb Hafi
रात को दीप की लो कम नहीं रखी जाती
धुंध में रोशनी मध्यम नहीं रखी जाती
कैसे दरिया की हिफाजत तेरे जिम्मे ठहराऊ
तुझ से इक आंख अगर नम नहीं रखी जाती
इसलिए छोड़कर जाने लगे सब चारागरा
जख्म से इज्जते मरहम नहीं रखी जाति
ऐसे कैसे मैं तुझे चाहने लग जाऊं भला
घर की बुनियाद तो यकदम नहीं रखी जाती