रात को दीप की लो कम नहीं रखी जाती
रात को दीप की लो कम नहीं रखी जाती
धुंध में रोशनी मध्यम नहीं रखी जाती
कैसे दरिया की हिफाजत तेरे जिम्मे ठहराऊ
तुझ से इक आंख अगर नम नहीं रखी जाती
इसलिए छोड़कर जाने लगे सब चारागरा
जख्म से इज्जते मरहम नहीं रखी जाति
ऐसे कैसे मैं तुझे चाहने लग जाऊं भला
घर की बुनियाद तो यकदम नहीं रखी जाती