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GHAZAL

रात को दीप की लो कम नहीं रखी जाती

रात को दीप की लो कम नहीं रखी जाती

धुंध में रोशनी मध्यम नहीं रखी जाती

कैसे दरिया की हिफाजत तेरे जिम्मे ठहराऊ

तुझ से इक आंख अगर नम नहीं रखी जाती

इसलिए छोड़कर जाने लगे सब चारागरा

जख्म से इज्जते मरहम नहीं रखी जाति

ऐसे कैसे मैं तुझे चाहने लग जाऊं भला

घर की बुनियाद तो यकदम नहीं रखी जाती

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