नज़्म - बेबसी
नज़्म - बेबसी
तेरे साथ गुज़रे दिनों की

@tehzeeb-hafi
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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नज़्म - बेबसी
तेरे साथ गुज़रे दिनों की
मोहब्बत ख़ुद अपने लिए जिस्म चुनती है
और जाल बुनती है उनके लिए
सफ़ेद शर्ट थी तुम सीढ़ियों पे बैठे थे
मैं जब क्लास से निकली थी मुस्कुराते हुए
मुझे बहुत है के मैं भी शामिल हूँ तेरी जुल्फों की ज़ाइरीनों में,
जो अमावस की काली रातों का रिज़्क़ बनने से बच गए,
"तुम अकेली नहीं हो सहेली"
तुम अकेली नहीं हो सहेली जिसे अपने वीरान घर को सजाना था
"तारीख़ क्या है"
सुबह रोशन थी और गर्मियों के थका देने वाले दिनों मे सारी दुनिया से आज़ाद हम मछलियों की तरह मैली नेहरों मे गोते लगाते
"हम मिलेंगे कहीं"
हम मिलेंगे कहीं
"तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे"
तू किसी और ही मौसम की महक लाई थी
जब वो इस दुनिया के शोर और ख़ामोशी से कता तअल्लुक़ होकर
इंग्लिश में गुस्सा करती है,
एक सहेली की नसीहत
तुम अकेली नहीं हो सहेली
सुब्हें रौशन थी और गर्मियों की थका देने वाले दिनों में
सारी दुनिया से आज़ाद हम मछलियों की तरह मैली नहरों में गोते लगाते
तमाम रात सितारों से बात रहती थी
कि सुब्ह होते ही घर से फूल आते थे
मैं सपनों में ऑक्सीजन प्लांट इंस्टॉल कर रहा हूँ
और हर मरने वाले के साथ मर रहा हूँ
मुझ पे तेरी तमन्ना का इल्ज़ाम साबित न होता तो सब ठीक था
ज़माना तेरी रौशनी के तसलसुल की क़समें उठाता है
पानी कौन पकड़ सकता है
जब वो इस दुनिया के शोर और ख़मोशी से क़त'अ-तअल्लुक़ होकर इंग्लिश में गुस्सा करती है,
मेरे जख्म नहीं भरते यारों
मेरे नाखून बढ़ते जाते हैं
"मरियम"
मैं आईनों से गुरेज़ करते हुए
कितना अर्सा लगा ना-उमीदी के पर्बत से पत्थर हटाते हुए
एक बिफरी हुई लहर को राम करते हुए