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NAZM

नज़्म - बेबसी

नज़्म - बेबसी

तेरे साथ गुज़रे दिनों की

कोई एक धुँदली सी तस्वीर

जब भी कभी सामने आएगी

तो हमें एक दुआ थामने आएगी,

बुढ़ापे की गहराइयों में उतरते हुए

तेरी बे-लौस बाँहों के घेरे नहीं भूल पाएँगे हम

हमको तेरे तवस्सुत से हँसते हुए जो मिले थे

वो चेहरे नहीं भूल पाएँगे हम

तेरे पहलू में लेटे हुओं का अजब क़र्ब है

जो रात भर अपनी वीरान आँखों से तुझे तकते थे

और तेरे शादाब शानों पे सिर रख के

मरने की ख़्वाहिश में जीते रहे

पर तेरे लम्स का कोई इशारा मयस्सर नहीं था

मगर इस जहाँ का कोई एक हिस्सा

उन्हें तेरे बिस्तर से बेहतर नहीं था

पर मोहब्बत को इस सब से कोई इलाका नहीं था

एक दुख तो हम बहरहाल हम अपने सीनों में ले के मरेंगे

कि हमने मोहब्बत के दावे किए

तेरे माथे पर सिंदूर टाँका नहीं

इससे क्या फ़र्क पड़ता है दूर हैं तुझसे या पास हैं

हमको कोई आदमी तो नहीं, हम तो एहसास हैं

जो रहे तो हमेशा रहेंगे

और गए तो मुड़ कर वापिस नहीं आएँगे

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