पानी कौन पकड़ सकता है

पानी कौन पकड़ सकता है

जब वो इस दुनिया के शोर और ख़मोशी से क़त'अ-तअल्लुक़ होकर इंग्लिश में गुस्सा करती है,

मैं तो डर जाता हूँ लेकिन कमरे की दीवारें हँसने लगती हैं

वो इक ऐसी आग है जिसे सिर्फ़ दहकने से मतलब है,

वो इक ऐसा फूल है जिसपर अपनी ख़ुशबू बोझ बनी है,

वो इक ऐसा ख़्वाब है जिसको देखने वाला ख़ुद मुश्किल में पड़ सकता है,

उसको छूने की ख़्वाइश तो ठीक है लेकिन

पानी कौन पकड़ सकता है

वो रंगों से वाकिफ़ है बल्कि हर इक रंग के शजरे तक से वाकिफ़ है,

उसको इल्म है किन ख़्वाबों से आंखें नीली पढ़ सकती हैं,

हमने जिनको नफ़रत से मंसूब किया

वो उन पीले फूलों की इज़्ज़त करती है

कभी-कभी वो अपने हाथ मे पेंसिल लेकर

ऐसी सतरें खींचती है

सब कुछ सीधा हो जाता है

वो चाहे तो हर इक चीज़ को उसके अस्ल में ला सकती है,

सिर्फ़ उसीके हाथों से सारी दुनिया तरतीब में आ सकती है,

हर पत्थर उस पाँव से टकराने की ख़्वाइश में जिंदा है लेकिन ये तो इसी अधूरेपन का जहाँ है,

हर पिंजरे में ऐसे क़ैदी कब होते हैं

हर कपड़े की किस्मत में वो जिस्म कहाँ है

मेरी बे-मक़सद बातों से तंग भी आ जाती है तो महसूस नहीं होने देती

लेकिन अपने होने से उकता जाती है,

उसको वक़्त की पाबंदी से क्या मतलब है

वो तो बंद घड़ी भी हाथ मे बांध के कॉलेज आ जाती है