मेरे जख्म नहीं भरते यारों

मेरे जख्म नहीं भरते यारों

मेरे नाखून बढ़ते जाते हैं

मैं तन्हा पेड़ हूं जंगल का

मेरे पत्ते झड़ते जाते हैं

मैं कौन हूं, क्या हूं, कब की हूं

एक तेरी कब हूं, सबकी हूं

मैं कोयल हूं शहराओ की

मुझे ताब नहीं है छांव की

एक दलदल है तेरे वादों की

मेरे पैर उखड़ते जाते हैं

मेरे जख्म नहीं भरते यारो

मेरे नाखून बढ़ते जाते हैं

मैं किस बच्चे की गुड़िया थी

मैं किस पिंजरे की चिड़िया थी

मेरे खेलने वाले कहां गए

मुझे चूमने वाले कहां गए

मेरे झुमके गिरवी मत रखना

मेरे कंगन तोड़ ना देना

मैं बंजर होती जाती हूं

कहीं दरिया मोड़ ना देना

कभी मिलना इस पर सोचेंगे

हम क्या मंजिल पर पहुंचेंगे

रास्तों में ही लड़ते जाते हैं

मेरे जख्म नहीं भरते यारों

मेरे नाखून बढ़ते जाते हैं