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GHAZAL

मेरी आंख से तेरा गम छलक तो नहीं गया

मेरी आंख से तेरा गम छलक तो नहीं गया

तुझे ढूंढ कर कहीं मैं भटक तो नहीं गया

यह जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल

मेरे दोस्त तू कहीं मुझसे थक तो नहीं गया

तेरी बद्दुआ का असर हुआ भी तो फायदा

मेरे मांद पड़ने से तू चमक तो नहीं गया

बड़ा पुरफरेब है शहदो शिर का ज़ायका

मगर इन लबों से तेरा नमक तो नहीं गया

तेरे जिस्म से मेरी गुफ्तगू रही रात भर

कहीं मैं नशे में ज्यादा बक तो नहीं गया

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मेरी आंख से तेरा गम छलक तो नहीं गया — Tehzeeb Hafi • ShayariPage