कब पानी गिरने से ख़ुशबू फूटी है
कब पानी गिरने से ख़ुशबू फूटी है
मिट्टी को भी इल्म है बारिश झूठी है
एक रिश्ते को लापरवाही ले डूबी
एक रस्सी ढीली पड़ने पर टूटी है
हाथ मिलाने पर भी उस पे खुला नहीं
ये उँगली पर ज़ख़्म है या अँगूठी है
उसका हँसना ना-मुमकिन था यूँ समझो
सीमेंट की दीवार से कोपल फूटी है
हमने इन पर शेर नहीं लिक्खे हाफ़ी
हमने इन पेड़ों की इज़्ज़त लूटी है
यूँ लगता है दीन-ओ-दुनिया छूट गए
मुझ से तेरे शहर की बस क्या छूटी है