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GHAZAL

कब पानी गिरने से ख़ुशबू फूटी है

कब पानी गिरने से ख़ुशबू फूटी है

मिट्टी को भी इल्म है बारिश झूठी है

एक रिश्ते को लापरवाही ले डूबी

एक रस्सी ढीली पड़ने पर टूटी है

हाथ मिलाने पर भी उस पे खुला नहीं

ये उँगली पर ज़ख़्म है या अँगूठी है

उसका हँसना ना-मुमकिन था यूँ समझो

सीमेंट की दीवार से कोपल फूटी है

हमने इन पर शेर नहीं लिक्खे हाफ़ी

हमने इन पेड़ों की इज़्ज़त लूटी है

यूँ लगता है दीन-ओ-दुनिया छूट गए

मुझ से तेरे शहर की बस क्या छूटी है

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कब पानी गिरने से ख़ुशबू फूटी है — Tehzeeb Hafi • ShayariPage