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GHAZAL

ग़लत निकले सब अंदाज़े हमारे

ग़लत निकले सब अंदाज़े हमारे

कि दिन आये नही अच्छे हमारे

सफ़र से बाज़ रहने को कहा हैं

किसी ने खोल के तस्मे हमारे

हर इक मौसम बहुत अंदर तक आया

खुले रहते थे दरवाज़े हमारे

उस अब्र-ए-मेहरबाँ से क्या शिकायत

अगर बर्तन नहीं भरते हमारे

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