GHAZAL•
जख्मों ने मुझ में दरवाजे खोले हैं
By Tehzeeb Hafi
जख्मों ने मुझ में दरवाजे खोले हैं
मैंने वक्त से पहले टांके खोलें हैं
बाहर आने की भी सकत नहीं हम में
तूने किस मौसम में पिंजरे खोले हैं
कौन हमारी प्यास पे डाका डाल गया
किस ने मस्कीजो के तसमे खोले हैं
यूं तो मुझको कितने खत मोसुल हुए
एक दो ऐसे थे जो दिल से खोलें हैं
ये मेरा पहला रमजान था उसके बगैर
मत पूछो किस मुंह से रोज़े खोलें हैं
वरना धूप का पर्वत किस से कटता था
उसने छतरी खोल के रास्ते खोले हैं