GHAZAL•
ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
By Tehzeeb Hafi
ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।
क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं
वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।
ये भी सच है मुझे कभी उसने कुछ ना कहा
ये भी सच है कि उस औरत से छुपा कुछ नहीं था।
अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है
मै पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था।