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GHAZAL

इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं

इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं

जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं

किसी मुंडेर पर कोई दिया जिला

फिर इस के बाद क्या हुआ पता नहीं

मैं आ रहा था रास्ते में फूल थे

मैं जा रहा हूँ कोई रोकता नहीं

तेरी तरफ़ चले तो उम्र कट गई

ये और बात रास्ता कटा नहीं

इस अज़दहे की आँख पूछती रही

किसी को ख़ौफ़ आ रहा है या नहीं

मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बे-ख़बर

मैं बुझ चुका हूँ और मुझे पता नहीं

ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से

मुझे लगा कि हो गया, हुआ नहीं

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