Shayari Page
GHAZAL

कितनी रातें काट चुका हूँ पर वो वस्ल का दिन

कितनी रातें काट चुका हूँ पर वो वस्ल का दिन

इस दरिया से पहले कितने जंगल आते हैं

हमें तो नींद भी आती है तो आधी आती है

वो कैसे हैं जिनको ख़्वाब मुकम्मल आते हैं

इस रस्ते पर पेड़ भी आते हैं उसने पूछा

जल कर ख़ुशबू देने वाले संदल आते हैं

कौन है जो इस दिल में ख़ामोशी से उतरेगा

देखो इस आवाज़ पे कितने पागल आते हैं

इक से भड़ कर एक सवारी अस्प-औ-फील भी है

जाने क्यों हम तेरी ज़ानिब पैदल आते हैं

Comments

Loading comments…
कितनी रातें काट चुका हूँ पर वो वस्ल का दिन — Tehzeeb Hafi • ShayariPage