कितनी रातें काट चुका हूँ पर वो वस्ल का दिन
कितनी रातें काट चुका हूँ पर वो वस्ल का दिन
इस दरिया से पहले कितने जंगल आते हैं
हमें तो नींद भी आती है तो आधी आती है
वो कैसे हैं जिनको ख़्वाब मुकम्मल आते हैं
इस रस्ते पर पेड़ भी आते हैं उसने पूछा
जल कर ख़ुशबू देने वाले संदल आते हैं
कौन है जो इस दिल में ख़ामोशी से उतरेगा
देखो इस आवाज़ पे कितने पागल आते हैं
इक से भड़ कर एक सवारी अस्प-औ-फील भी है
जाने क्यों हम तेरी ज़ानिब पैदल आते हैं