GHAZAL•
नहीं था अपना मगर फिर भी अपना अपना लगा
By Tehzeeb Hafi
नहीं था अपना मगर फिर भी अपना अपना लगा
किसी से मिल के बहुत देर बाद अच्छा लगा
तुम्हें लगा था मैं मर जाऊँगा तुम्हारे बग़ैर
बताओ फिर तुम्हें मेरा मज़ाक कैसा लगा
तिजोरियों पे नज़र और लोग रखते हैं
मैं आसमान चुरा लूँगा जब भी मौक़ा लगा
दिखाती है भरी अलमारियाँ बड़े दिल से
बताती है कि मोहब्बत में किसका कितना लगा