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GHAZAL

नहीं था अपना मगर फिर भी अपना अपना लगा

नहीं था अपना मगर फिर भी अपना अपना लगा

किसी से मिल के बहुत देर बाद अच्छा लगा

तुम्हें लगा था मैं मर जाऊँगा तुम्हारे बग़ैर

बताओ फिर तुम्हें मेरा मज़ाक कैसा लगा

तिजोरियों पे नज़र और लोग रखते हैं

मैं आसमान चुरा लूँगा जब भी मौक़ा लगा

दिखाती है भरी अलमारियाँ बड़े दिल से

बताती है कि मोहब्बत में किसका कितना लगा

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