Untitled
तेरी तरफ़ मेरा ख़याल क्या गया
के फिर मैं तुझको सोचता चला गया
ये शहर बन रहा था मेरे सामने
ये गीत मेरे सामने लिखा गया
ये वस्ल सारी उम्र पर मुहीत है
ये हिज्र एक रात में समा गया
मुझे किसी की आस थी न प्यास थी
ये फूल मुझको भूल कर दिया गया
बिछड़ के साँस खेंचना मुहाल था
मैं ज़िंदगी से हाथ खेंचता गया
मैं एक रोज दस्त क्या गया के फिर
वो बाग़ मेरे हाथ से चला गया