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GHAZAL

हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गए

हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गए

हिज्र से बचने के मंतर आ गए

मैंने तुमको अंदर आने का कहा

तुम तो मेरे दिल के अंदर आ गए

एक ही औरत को दुनिया मान कर

इतना घूमा हूँ कि चक्कर आ गए

इम्तिहान-ए-इश्क़ मुश्किल था मगर

नक्ल कर के अच्छे नंबर आ गए

तेरे कुछ आशिक़ तो गंगाराम हैं

और जो बाक़ी थे निश्तर आ गए

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हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गए — Tehzeeb Hafi • ShayariPage