आज जिन झीलों का बस काग़ज़ में नक्शा रह गया

आज जिन झीलों का बस काग़ज़ में नक्शा रह गया

एक मुद्दत तक मैं उन आँखों से बहता रह गया


मैं उसे ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त समझा था मगर

वो मेरे दिल में रहा और अच्छा ख़ासा रह गया


वो जो आधे थे तुझे मिलकर मुक़म्मल हो गए

जो मुक़म्मल था वो तेरे ग़म में आधा रह गया