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GHAZAL

मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है, मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा

मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है, मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा

तुम मुझे ज़हर लगते हो और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा

तू तो बीनाई है मेरी तेरे अलावा मुझे कुछ भी दिखता नहीं

मैंने तुझको अगर तेरे घर पे उतारा तो मैं कैसे घर जाऊँगा

चाहता हूँ तुम्हें और बहुत चाहता हूँ, तुम्हें ख़ुद भी मालूम है

हाँ अगर मुझसे पूछा किसी ने तो मैं सीधा मुँह पर मुकर जाऊँगा

तेरे दिल से तेरे शहर से तेरे घर से तेरी आँख से तेरे दर से

तेरी गलियों से तेरे वतन से निकाला हुआ हूँ किधर जाऊँगा

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