ज़ने हसीन थी और फूल चुन कर लाती थी
ज़ने हसीन थी और फूल चुन कर लाती थी
मैं शेर कहता था, वो दास्ताँ सुनाती थी

@ali-zaryoun
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
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ज़ने हसीन थी और फूल चुन कर लाती थी
मैं शेर कहता था, वो दास्ताँ सुनाती थी
बुझी आंखों में किरणें भर रही हो, कौन हो तुम?
मेरी नींदों को रोशन कर रही हो, कौन हो तुम?
वो ही कर्तबा तेरी याद का, वो ही नै नवा ए खयाल है
वो ही मैं जो था तेरे हिज्र में, वो ही मशहद ए खद्दो खाल है
मुझे तो सब तमाशा लग रहा है
खुदा से पूछ उसे क्या लग रहा है
हम यूँ ही नहीं शह के अज़ादार हुए हैं
नस्ली हैं तो अस्ली के परस़्तार हुए हैं
अपने यारों से बहुत दूर नहीं होता था
यार तू उन दिनों मशहूर नहीं होता था
मन जिस का मौला होता है
वो बिल्कुल मुझ सा होता है
बात मुकद्दर की है सारी वक्त का लिक्खा मारता है
कुछ सजदों में मर जाते हैं कुछ को सजदा मारता है
यार तो उसके सालगिराह पर क्या क्या तोहफें लाए हैं
और इधर हमने उसकी तस्वीर को शेर सुनाएं हैं
चमकते दिन बहुत चालाक है शब जानती है
उसे पहले नहीं मालूम था अब जानती है
जो इस्म-ओ-जिस्म को बाहम निभाने वाला नही
मैं ऐसे इश्क़ पर ईमान लाने वाला नहीं
गुल-ए-शबाब महकता है और बुलाता है
मेरी ग़ज़ल कोई पश्तो में गुनगुनाता है
मैं सोचता हूँ न जाने कहाँ से आ गए हैं
हमारे बीच ज़माने कहाँ से आ गए हैं
चादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूं
हर पर्दा पर्दा नहीं होता इतना मैं भी जानता हूं
खुदा बंदा तने तन्हा गया है
सुए दरिया मेरा प्यासा गया है्
नेकिया और भलाईया मौला
सब के सब खुदनुमाईया मौला
हालत जो हमारी है तुम्हारी तो नहीं है
ऐसा है तो फिर ये कोई यारी तो नहीं है
प्यार में जिस्म को यकसर न मिटा जाने दे !
कुर्बत-ए-लम्स को गाली ना बना जाने दे !!
इस तरह से न आज़माओ मुझे
उसकी तस्वीर मत दिखाओ मुझे
ख़याल में भी उसे बे-रिदा नहीं किया है
ये ज़ुल्म मुझसे नहीं हो सका नहीं किया है