नया ज़ायक़ा है मज़ा मुख़्तलिफ़ है
नया ज़ायक़ा है मज़ा मुख़्तलिफ़ है
ग़ज़ल चख के देख इस दफ़ा मुख़्तलिफ़ है

@ali-zaryoun
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
117
Likes
0
नया ज़ायक़ा है मज़ा मुख़्तलिफ़ है
ग़ज़ल चख के देख इस दफ़ा मुख़्तलिफ़ है
इसी लिए तो मुझे सुनके तैश आया है
तुम्हारा हाल किसी और ने बताया है
पागल कैसे हो जाते हैं
देखो ऐसे हो जाते हैं
जिस तरह वक़्त गुज़रने के लिए होता है
आदमी शक्ल पे मरने के लिए होता है
तुम जो कहते हो सुनूँगा जो पुकारोगे मुझे
जानता हूँ कि तुम ही घेर के मारोगे मुझे
मेरे लिए तो इश्क़ का वादा है शायरी
आधा सुरूर तुम हो तो आधा है शायरी
शाहसाज़ी में रियायत भी नही करते हो
सामने आके हुकूमत भी नही करते हो
इक हिजरत की आवाज़ों का
कोई बैन सुने दरवाज़ों का
जनाब-ए-शैख़ की हर्ज़ा-सराई जारी है
उधर से ज़ुल्म इधर से दुहाई जारी है
मैं जब वजूद के हैरत-कदे से मिल रहा था
मुझे लगा मैं किसी मो'जिज़े से मिल रहा था
तेरे आगे सर-कशी दिखलाउँगा?
तू तो जो कह दे वही बन जाऊँगा
सुकूत-ए-शाम का हिस्सा तू मत बना मुझ को
मैं रंग हूँ सो किसी मौज में मिला मुझ को
ख़्वाब का ख़्वाब हक़ीक़त की हक़ीक़त समझें
ये समझना है तो फिर पहले तरीक़त समझें
तुम सर्वत को पढ़ती हो
कितनी अच्छी लड़की हो
मन जिस का मौला होता है
वो बिल्कुल मुझ सा होता है
अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
ख़ुद अपने साथ हूँ या'नी ख़ुदा के साथ हूँ मैं
पहले-पहल लड़ेंगे तमस्ख़ुर उड़ाएँगे
जब इश्क़ देख लेंगे तो सर पर बिठाएँगे
पराई नींद में सोने का तजरबा कर के
मैं ख़ुश नहीं हूँ तुझे ख़ुद में मुब्तला कर के
चुपचाप क्यों फिरो हो कोई बात तो करो
हल भी निकालते हैं मुलाकात तो करो
चरागाहें नई आबाद होगी
मगर जो बस्तियां बर्बाद होगी