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GHAZAL

जनाब-ए-शैख़ की हर्ज़ा-सराई जारी है

जनाब-ए-शैख़ की हर्ज़ा-सराई जारी है

उधर से ज़ुल्म इधर से दुहाई जारी है

बिछड़ गया हूँ मगर याद करता रहता हूँ

किताब छोड़ चुका हूँ पढ़ाई जारी है

तिरे अलावा कहीं और भी मुलव्विस हूँ

तिरी वफ़ा से मिरी बेवफ़ाई जारी है

वो क्यूँ कहेंगे कि दोनों में अम्न हो जाए

हमारी जंग से जिन की कमाई जारी है

अजीब ख़ब्त-ए-मसीहाई है कि हैरत है

मरीज़ मर भी चुका है दवाई जारी है

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