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GHAZAL

तुम जो कहते हो सुनूँगा जो पुकारोगे मुझे

तुम जो कहते हो सुनूँगा जो पुकारोगे मुझे

जानता हूँ कि तुम ही घेर के मारोगे मुझे

मैं भी इक शख़्स पे इक शर्त लगा बैठा था

तुम भी इक रोज़ इसी खेल में हारोगे मुझे

ईद के दिन की तरह तुमने मुझे ज़ाया किया

मैं समझता था मुहब्बत से गुज़ारोगे मुझे

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