GHAZAL•
इक हिजरत की आवाज़ों का
By Ali Zaryoun
इक हिजरत की आवाज़ों का
कोई बैन सुने दरवाज़ों का
ज़करिय्या पेड़ों की मत सुन
ये जंगल है ख़मयाज़ों का
तिरे सर में सोज़ नहीं प्यारे
तू अहल नहीं मिरे साज़ों का
औरों को सलाहें देता है
कोई डसा हुआ अंदाज़ों का
मिरा नख़रा करना बनता है
मैं ग़ाज़ी हूँ तिरे गाज़ों का
इक रेढ़ी वाला मुंकिर है
तिरी तोपों और जहाज़ों का