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GHAZAL

ख़्वाब का ख़्वाब हक़ीक़त की हक़ीक़त समझें

ख़्वाब का ख़्वाब हक़ीक़त की हक़ीक़त समझें

ये समझना है तो फिर पहले तरीक़त समझें

मैं जवाबन भी जिन्हें गाली नहीं देता वो लोग

मेरी जानिब से इसे ख़ास मोहब्बत समझें

मैं तो मर कर भी न बेचूँगा कभी यार का नाम

आप ताजिर हैं नुमाइश को इबादत समझें

मैं किसी बीच के रस्ते से नहीं पहुँचा यहाँ

हासिदों से ये गुज़ारिश है रियाज़त समझें

मेरा बे-साख़्ता-पन उन के लिए ख़तरा है

साख़्ता लोग मुझे क्यूँ न मुसीबत समझें

फेसबुक वक़्त अगर दे तो ये प्यारे बच्चे

अपने ख़ामोश बुज़ुर्गों की शिकायत समझें

पेश करता हूँ मैं ख़ुद अपनी गिरफ़्तारी 'अली'

उन से कहना कि मुझे ज़ेर-ए-हिरासत समझें

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ख़्वाब का ख़्वाब हक़ीक़त की हक़ीक़त समझें — Ali Zaryoun • ShayariPage