गुल-ए-शबाब महकता है और बुलाता है

गुल-ए-शबाब महकता है और बुलाता है

मेरी ग़ज़ल कोई पश्तो में गुनगुनाता है

अजीब तौर है उसके मिजाज-ए-शाही का

लड़े किसी से भी, आंखें मुझे दिखाता है

तुम उसका हाथ झटक कर ये क्यों नहीं कहतीं

तू जानवर है जो औरत पे हाथ उठाता है