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GHAZAL

हालत जो हमारी है तुम्हारी तो नहीं है

हालत जो हमारी है तुम्हारी तो नहीं है

ऐसा है तो फिर ये कोई यारी तो नहीं है

तहक़ीर ना कर ये मेरी उधड़ी हुई गुदड़ी

जैसी भी है अपनी है उधारी तो नहीं है

तनहा ही सही लड़ तो रही है वो अकेली

बस थक के गिरी है अभी हारी तो नहीं है

ये तू जो मोहब्बत में सिला मांग रहा है

ऐ शख्स तू अंदर से भिखारी तो नहीं है

जितनी भी कमा ली हो बना ली हो ये दुनिया

दुनिया है तो फिर दोस्त तुम्हारी तो नहीं है

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