बात मुकद्दर की है सारी वक्त का लिक्खा मारता है

बात मुकद्दर की है सारी वक्त का लिक्खा मारता है

कुछ सजदों में मर जाते हैं कुछ को सजदा मारता है

सिर्फ हम ही हैं जो तुझ पर पूरे के पूरे मरते हैं

वरना किसी को तेरी आंखें, किसी को लहज़ा मारता है

दिलवाले एक दूजे की इमदाद को खुद मर जाते हैं

दुनियादार को जब भी मारे दुनियावाला मारता है

शहर में एक नए कातिल के हुस्न-ए-सुखन के बलवे हैं

उससे बच के रहना शेर सुना के बंदा मारता है