जितना गुमान से जुल्फों को सँवारा गया
जितना गुमान से जुल्फों को सँवारा गया
उतना इमान से ये बेसहारा गया

@murli-dhakad
Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.
Followers
0
Content
36
Likes
0
जितना गुमान से जुल्फों को सँवारा गया
उतना इमान से ये बेसहारा गया
बज़्म-ए-जानाँ की रंगत कुछ खास है
लेकिन आज रिन्द की तबियत उदास है
उसूल अलग हैं जमीन और दलदल के
कमल को छूना मगर ज़रा संभल के
और कोई ग़म न था क्या जमाने में
दिल दहल उठा है आधे ही पैमाने में
मुजाहिद की दास्तान है ख़्वाब मेरे
उम्र भर की थकान है ख़्वाब मेरे
बनने बिगड़ने के रास्ते, सारे बवाल छोड़ चुके
हम अपनी ज़िन्दगी को, ज़िन्दगी के हाल छोड़ चुके
सभी के हिस्से में बेबसी नही आती
दर्द की बातों पर अब हँसी नही आती
परिंदे की परवाज सुनाई दी है
गगन में कोई आवाज सुनाई दी है
उसे मेरी याद सताएगी इस पर मुझे शक है
कभी बरसात रुलाएगी इस पर मुझे शक है
इसी उलझन में उम्र सारी बसर की
ये छाया सूरज की है या शजर की
रात जैसे जैसे ढलती जा रही है
कोई कसक दिल में मचलती जा रही है
हम सबको इसी हैरत में मर जाना है
कि मरके फिर किधर जाना है
शिखर पे चढ़के बैठे थे एहतियात के
मौसम सभी गुजर गए बरसात के
दिल दुखाने को आए हो तुम
फिर रुलाने को आए हो तुम
ख्वाब टूटता है तो वो उसके निशां ढूँढता है
चाँद फलक पर है, जमीं पर कहाँ ढूँढता है