Shayari Page
GHAZAL

और कोई ग़म न था क्या जमाने में

और कोई ग़म न था क्या जमाने में

दिल दहल उठा है आधे ही पैमाने में

कोई जन्नत का नाम न ले लेना

खुदा के साथ खड़ा हूँ वीराने में

और भी हैं साक़ी के तलबगार

और भी लोग हैं मयखाने में

तुम मुझसे मेरा हासिल पुछते हो

उम्र गुजरी है तुमको रिझाने में

तुम सीरत में मुझसे जुदा हो लेकिन

है तुम्हारा दर्द भी मेरे अफ़साने में

Comments

Loading comments…
और कोई ग़म न था क्या जमाने में — Murli Dhakad • ShayariPage